अब्बास मुगल,,,
भारतीय चुनावी मौसम राजनीति के रंगमंच पर एक महासंग्राम लेकर आया। भारत की दो प्रमुख
राजनीतिक पार्टियाँ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस), सत्ता की बागडोर संभालने के लिए आमने-सामने थीं।
पृष्ठभूमि2024 के चुनाव से पहले, भाजपा ने पिछले दशक में देश पर शासन किया था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भाजपा ने विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा और हिंदुत्व के मुद्दों को प्रमुखता से रखा था। दूसरी ओर, कांग्रेस, राहुल गांधी के नेतृत्व में, अपनी पुरानी गौरवशाली विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए संघर्ष कर रही थी।चुनाव अभियानभाजपा ने अपने अभियान में ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारों को उछाला। उन्होंने अपने शासन के दौरान किए गए कार्यों, जैसे कि जनधन योजना, स्वच्छ भारत मिशन, और मेक इन इंडिया, पर जोर दिया। नरेंद्र मोदी की करिश्माई व्यक्तित्व और उनके भाषणों ने जनता को आकर्षित किया
कांग्रेस ने ‘न्याय’ (न्यूनतम आय योजना) और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूरे देश में रैलियों और रोड शो के माध्यम से जनता को लुभाने का प्रयास किया। उन्होंने भाजपा पर सांप्रदायिकता और आर्थिक असमानता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।प्रमुख मुद्देआर्थिक असमानता: भाजपा की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते हुए, कांग्रेस ने ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे व्यापारियों की समस्याओं को उजागर किया।रोजगार: युवाओं के बीच बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बना रहा। दोनों पार्टियों ने रोजगार सृजन के लिए अपने-अपने वादे किए।कृषि संकट: किसानों की समस्याएँ, विशेषकर कृषि कानूनों के विरोध के बाद, चुनावी मुद्दा बनी रहीं सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता:
कांग्रेस ने भाजपा पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप लगाया, जबकि भाजपा ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान से जोड़कर पेश किया।नतीजेचुनाव के नतीजे बेहद निर्णायक थे। जनता का मूड बदल चुका था और बदलाव की बयार बह रही थी। यह चुनाव भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लाने वाला था
।कौन सी पार्टी सत्ता में आएगी यह तो समय ही बताएगा। लेकिन 2024 का चुनाव भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत करने वाला साबित हुआ। इस चुनावी संघर्ष ने देश के नागरिकों को उनकी ताकत और उनके मताधिकार की अहमियत का एहसास दिलाया।भारतीय राजनीति में यह मुकाबला एक नई दिशा की ओर संकेत कर रहा था, जहाँ जनता की आवाज़ ही सर्वोपरि थी।